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"प्रेम" पर रचनाएँ

'प्रेम' शब्द जितना मोहक, अनुभूत व हृदयग्राह्य है उतना ही इसकी अभिव्यक्ति गूढ़, शब्द-सीमा से परे और अधूरी है। प्रेम की व्याख्या भी पानी पर लकीर खींचने जैसा ही है, इसे चाहे जिस रूप में व्याख्यायित कर लिया जाए तथापि कहीं न कहीं एक रिक्तता रह जाती है, जो भावी पीढ़ी द्वारा उनके हल ढूँढ़ने के लिए उनके मानसिक उद्वेलन को बढ़ा देती है।

            

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