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युग और मैं (कविता) Editior's Choice

तुम मेरी अंतिम पराजय हो
इस छोटी-सी दुनिया के गंदे शराबख़ाने में।
वह, जो भटकी उजाले की पंख थाम,
मेरी छाया थी।

धूप और शब्द और फूल और प्यार
निर्जन, उचाट और इंतज़ार
धूप और शब्द और फूल
निर्जन उचाट और...
धूप और शब्द
निर्जन...उचाट
धूप
उचाट...।

तुम भय हो, अज्ञान की प्रतिकृति हो, अँधेरा हो
इस छोटी-सी दुनिया के गंदे शराबख़ाने में।
वह, जो भटकी उजाले के पंख थाम,
मेरी छाया थी।

रात और दिन और साँझ और सवेरे
घिसे पिटे लोग और ऋतुओं के फेरे
रात और दिन और साँझ
घिसे-पिटे लोग और ऋतुएँ
रात और दिन
घिसे-पिटे लोग
रात—घिसी
पिटी।

मेरी बीमारी हो तुम, मृत्यु हो, पागलपन हो
इस छोटी-सी दुनिया के गंदे शराबख़ाने में
वह, जो भटकी दिनों की आयु थाम,
मेरी छाया थी।


रचनाकार : दूधनाथ सिंह
            

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