ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा,
मैं सज्दे में नहीं था आप को धोका हुआ होगा।
यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियाँ,
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।
ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते,
वो सब के सब परेशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा।
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन सुन कर तो लगता है,
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा।
कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उस के बारे में,
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा।
यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं,
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जल्सा हुआ होगा।
चलो अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें,
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।
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