...मैं हूँ
मैं हूँ किसी का
...हूँ किसी का
सपना
देखा हुआ अनदेखा
अपना
स्मृति में जैसे बसा-किसी की
विस्मृति का फूल
बन, खिलने की हसरत में
दिन-रात तपना
पहरों-पहरों, देह की देहरी पर
रह-रहकर अंगार-सा
दहकना
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें