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विश्वास (कविता) Editior's Choice

मैं नश्वर हूँ
पर मुझसे भी नश्वर है मेरी किताब
जिसे मैं इतनी लगन से लिखता हूँ

मैं नश्वर हूँ
पर मुझसे कम नश्वर नहीं हैं
अलबम में रखे मेरे ये फ़ोटोग्राफ

मुझ नश्वर की
और भी ज़्यादा नश्वर हैं ये डायरियाँ
जो इतने सालों में लिखी गई हैं
और कितना क्षणभंगुर है मेरा यह विश्वास
कि इन्हें लेकर मैं काल के पार जाऊँगा
अपने जीवन में ही बनवा लेता हूँ अपनी प्रतिमाएँ
तरह-तरह की बनी
मेरी ये प्रतिमाएँ
कम नश्वर नहीं हैं
जो पुण्य तिथियों के बाद ही बिसरा दी जाती हैं

चिट्ठियाँ जो मैं लिखता हूँ
वे तो और भी क्षणभंगुर हैं
जो वर्ष के अंत में
माचिस की तीलियों से जला दी जाती हैं

जो भी उपहार मैं देता हूँ
कुछ दिनों मे टूट जाते हैं
उपहार की उम्र है एक साल
शुभकामनाओं के दिन चार

मेरे पास जो भी हैं
स्थावर, अक्षर, अक्षुण्ण
जिनहें मैं कालातीत साबित करने में
जुटा रहता हूँ
वे बर्फ़ के गोले की तरह
धीरे-धीरे विलीन हो जाते हैं।

कोई कहता है
शब्द अमर है
पर मैं अपने शब्दों पर कैसे करूँ विश्वास
जो दो बूँद जल में ही गल जाते हैं।


            

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