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वसंत की हत्या (कविता) Editior's Choice

सब बेपहचान
हवा भी अंधी।

जल पगडंडी!
तुमसे भी धँसना ही
धँसना, बेथाह!

पियानो की धुन में
लिपटे आकार!
तुम्हारे भी इतने...
क्रूर... विचार!

पतझरी फूल-गात!
तुम भी इतने उदासीन...
इतने उदास... आह—

सब बेपहचान
हवा भी अंधी।

अभिसारी पक्षि-शावक-मन!
तुम्हारा भी उड़ना ही उड़ना
मृगांक-कस्तूरी दिशाओं में

शेष
हर छटपटाहट के बाद
घृणा का असह्य तूफ़ान
वसंत! तुम्हारे ही प्रति—
दिन-दिन तुम्हारी ही हत्या के प्रति...

तब क्या करूँ लेकर
युग-भर का इतना... इतना
मृतांधकार! आह...
सब बेपहचान
हवा भी अंधी।
सब...


            

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