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उत्तरदायित्व (लघुकथा)

माहिष्मती गाँव में ललिता देवी नामक एक सुसभ्य सुसंस्कृत महिला रहती थी। उनके पति गौरी शंकर एक पढ़े लिखे और निहायत भद्र स्वभाव के स्वाभिमानी एक छोटे से सरकारी मुलाज़िम थे। घर का सारी देख-रेख और निर्वहण ललिता देवी ही करती थीं। उसने दिन-रात बड़ी मेहनत, त्याग और संघर्ष से अपने सभी बघ्चों को पढ़ाया लिखाया और जीवन जीने के क़ाबिल बनाया। चार बेटियों की शादियाँ यथोचित घरों में योग्य वर के साथ की। पाँच एकड़ का केवल उसके पास गृहवास शेष था जिसमें, बग़ीचे, बाँस, पोखर, कुछ खेत भी सम्मिलित थे। बड़े जतन से सहेज कर ललिता देवी ने उसे बचा कर रखी थी। बेटों को बड़े कष्ट से पढ़ाई लिखाई थी वह। बड़े और मझिले बेटे बाहर नौकरी करते थे। बड़ा बेटा शिव शादी के बाद माँ बाप या भाई बहनों से दूर रहने लगा था। मँझला शादी के बाद पत्नी को मैके छोड़ निकल गया था। ललिता देवी की एक बेटी दो बच्चों के साथ उसी के साथ रहती थी। छोटा बेटा अभी साथ ही रहता था क्योंकि उसे नौकरी नहीं लगी थी। ललिता देवी का तीसरा बेटा बहुत ही मेधावी, स्वावलंबी और परिश्रमी सह अद्वितीय प्रतिभासम्पन्न था। किन्तु पारिवारिक दुर्व्यवस्था और आर्थिक तंगी को देखते हुए उसने सरकारी स्कूल में नौकरी पकड़ ली थी और पूरे परिवार के भरण पोषण का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया था।

इसी बीच चतुर्भुज योजना के तहत एन॰एच॰ सड़क विस्तारीकरण की परियोजना शुरु हो गई। वह चौड़ी सड़क निर्माण के क्रम में ललिता देवी की गृहवास की ज़मीनें भी पड़ती थी। सरकारी तंत्र उसके बदले उसके कुछ मूल्य भी दे रहे थे। लोगों ने छल से घर की ज़मीन को खेतिहर ज़मीन लिखवा दिया था। यह सब बातें ललिता देवी के बड़े बेटे को पता चली। वह रिटायर्ड ही हुआ था। जो तीस वर्ष से अधिक समय से माँ के पास और गाँव आना छोड़ दिया था, वह अचानक माँ के चरणों में आ चुका था। माँ अचानक अवतरित पुत्र और उसके परिवार को देख पिछली बातें, तक़लीफ़ें सब भुला ममता के स्नेहिल आँचल में उसे छिपा रही थी। शिव ने ज़मीन आदि सरकारी अधिग्रहण आदि के बारे में जानकारी ली। गाँव क़स्बों में तो थाना, मंडल, उपमंडल, तहसील आदि स्थलों में बहुत ही दौड़-धूप करने पड़ते हैं। गौरीशंकर के निधन के बाद पूरी ज़मीन की मालकिन ललिता देवी थी। अतः अन्य बेटों के वहाँ न रहने के कारण शिव ने माँ ललिता से मालिकाना हक़ अपने नाम करवा लिया था। माँ भी उसकी बातों में आकर और किसी बेटे से पावर ऑफ़ अटार्नी शिव को देने के सम्बन्ध में बात नहीं की। उल्टे शिव ने माँ के पेंशन के पचास हज़ार ज़मा रुपये भी ख़र्चे के नाम पर ले लिए थे।
माँ शिव पर विश्वास कर अपने तीसरे बेटे के पास सबको लेकर आ गई थी। इधर मालिकाना हक़ मिलने के बाद शिव ने उसमें से माँ की हिस्सेदारी ही ख़त्म कर दी। लाखों की सम्पत्ति का मालिक बन उसने सरकार से सड़क निर्माणाधीन अपनी ज़मीन के बदले लाखों रूपये प्राप्त किए किन्तु अपने भाईयों को कुछेक हज़ार के चेक देकर "सब पूलिस और वकील को देने पड़े" ऐसा कह सब रूपये गटक गए। माँ को अपने बेटे शिव पर अचानक विश्वास करने और मालिकाना हक़ देने पर बस पछतावा हो रहा था। पचासी वर्ष की वृद्धा ललिता देवी की आँखे अपनी ही कोख़ के धोखेबाजी़ से हताहत और अश्रुप्लावित थी। आज उसके पास अपना सबकुछ लुट चुका था, सिर्फ़ और सिर्फ़ शेष थे अपने उत्तरदायित्व निर्वहण और ज़मीर। बेटा रतन ने उसे समझा बुझाकर शान्त किया था।


लेखन तिथि : जुलाई, 2021
            

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