हे भारत के वीर सपूतों
उठो विवेकानंद बनो।
अपने भारत नीज को
पहचानों तुम
उठो तब तक न रुको
लक्ष्य न जब तक पा लो तुम।
हे भारत के वीर सपूतों
उठो विवेकानंद बनों।।
अपनी संस्कृति पहचानों तुम
क्यों उलझ गए हो पश्चिम में
वेद, पुराण, उपनिषद की भाषा
क्या नहीं है तेरे मन मन्दिर में।
नीज भाषा नीज संस्कार
पहचानों तुम
तुफ़ानी संन्यासी की वाणी
अंतर्तम में बसा लो तुम
अंतर्तम में बसा लो तुम।
हे भारत के वीर सपूतों
उठो विवेकानंद बनों
उठो विवेकानंद बनों।।
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