अँधेरा मन के भीतर था
उजाले की राह रोक कर खड़ा।
अँधेरे के ख़िलाफ़
क्या कर सकता था मैं
ख़ुद को जला देने के अलावा?
उजाला हतवाक्
कि एक इंसान जल रहा था
उसके पक्ष में खड़ा-खड़ा
एक कवि
लिख रहा था
इस समूचे घटनाक्रम को
अपनी कविता में
इस तरह।
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