उदासी (कविता)

अठमाहे गर्भ को अपनी देह में छिपाए
वह लेटी है आँखें मूँद कर ऐसे
जैसे सो रही हो गहरी नींद और
सो रहा हो उसके पेट में उसका अठमाहा बच्चा
यह अख़बार में छपी एक तस्वीर है जहाँ
भीषण त्रासदी के निशान बिखरे पडे़ हैं यहाँ-वहाँ
पूरे परिदृश्य में मची हलचल और हाहाकार के बीच
दीवार से सिर टिकाए वह स्त्री मृत
ऐसे जैसे दिन भर के काम के बाद थक कर
सो गई हो पल भर, और
ऐसे जैसे पल भर सो लेने के बाद
सहारा लेकर इसी दीवार का खड़ी होगी फिर से
और सहलाएगी अपने अजन्मे बच्चे को मन भर
सो गया हो उसके भीतर ही उसका अठमाहा गर्भ भी
अपनी माँ के पेट से टेक लगाए सो रहा वह मासूम
सुरक्षित है भीतर कि
सबसे सुरक्षित महसूसते हैं शिशु स्वयं को
जब होते हैं माँ के स्नेह से भरे अंक में

मेरी आँखों के सामने जीवंत हो उठता है
उस मासूम का मृत चेहरा कि
पेट के भीतर अपने नन्हे हाथों से
कैसे थाम रखा होगा उसने अपनी माँ को
अपनी आँखें मींचे कितना सुरक्षित महसूस कर रहा होगा ख़ुद को

और इसी तरह अजन्मा ही लौट गया वह जहाँ से आया था
यह मेरे समय का भयानक सच है
कि चारों तरफ़ मचा है हाहाकार
और अजन्मे ही लौट जा रहे हैं बच्चे
ऐसे जैसे उदास लौट जाए कोई दरवाज़े से।


रचनाकार : ज्योति चावला
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