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तुमने देखा (कविता) Editior's Choice

तुमने देखा
कि हँसती बहारों ने?
तुमने देखा,
कि लाखों सितारों ने?

कि जैसे सुबह
धूप का एक सुनहरा बादल छा जाए,
और अनायास
दुनिया की हर चीज़ भा जाए :
कि जैसे सफ़ेद और लाल गुलाबों का
एक शरारती गुच्छा
चुपके से खिड़की के अंदर झाँके
और फिर हवा से खेलने लग जाए
शरमा के
मगर बुलाने पर
एक भीनी-सी नाज़ुक ख़ुशबू
पास खड़ी हो जाए आके।

तुमने कुछ कहा,
कि जाग रही चिड़ियों ने?
तुमने कुछ कहा,
कि गीत की लड़ियों ने
तुमने सिर्फ़ पूछा था—
“तुम कैसे हो?”
लगा वह उलाहना था—
“तुम बड़े वैसे हो!...”
मैंने चाहा।
तुमसे भी अधिक सुंदर कुछ कहूँ,
उस विरल क्षण की अद्वितीय व्याख्या में
सदियों तक रहूँ,
लेकिन अव्यक्त
लिए मीठा-सा दर्द,
बिखर गए इधर-उधर
मोहताज शब्द...।


            

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