देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा (ग़ज़ल) Editior's Choice

तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा,
अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा।

ख़रगोश बन के दौड़ रहे हैं तमाम ख़्वाब,
फिरता है चाँदनी में कोई सच डरा-डरा।

पौधे झुलस गए हैं मगर एक बात है,
मेरी नज़र में अब भी चमन है हरा-भरा।

लंबी सुरंग-सी है तेरी ज़िंदगी तो बोल,
मैं जिस जगह खड़ा हूँ वहाँ है कोई सिरा।

माथे पे रखके हाथ बहुत सोचते हो तुम,
गंगा क़सम बताओ हमें क्या है माजरा।


            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें