जिसके जीवन में
सबसे ज़्यादा उदासी है
वह रोज़ सींचती है
फूल के गाछ
सुबह जगती है फूल की आशा लिए
कोई तो खिला होगा टहनी पर
हद ये कि
इस खिलने का एक कोना भी
परछाईं की तरह
नहीं गिरता उसके उदास चेहरे पर
यही होता है अक्सर
जहाँ छप्पन भोग है वहाँ
जीभ को स्वाद की तलाश है
जो वर्जित है वह एक कामना
जो नमक की तरह खारा है
उसके बिना मिठास नहीं आती
पानी का संगीत सुनने के लिए
बैठा था वह नदी के किनारे
दिखाई देती है
उछलती सतह पर काँटों से बिंधी मछली।
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