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सोने की ईंट (कविता) Editior's Choice

कंचन-सी गोरी घूमने को मार्किट गई
उसे देख ख़ुद मार्किट घूम रही है।
कवियों ने कहा स्वर्णिम उषा सुंदरी है
किरणों का पहने किरीट घूम रही है
स्वर्णकार बोले लो सुमेरु तो पिघल गया
उछट उसी की कोई छींट घूम रही है
तस्कर लगा के घात आपस में बात करें,
साठ किलो सोने की ये ईंट घूम रही है।


            

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