स्नेह भरे आँचल में माते (गीत)

कष्टों से व्याकुल मेरा मन, पीड़ा से जब भरता है।
स्नेह भरे आँचल में माते, छुपने को मन करता है॥

जब भी विपदा आई मुझपर, तूने हमें बचाया है।
पोंछ आँसुओं को तूने माँ, मुझको गले लगाया है॥
सर पर तेरा हाथ सदा ही, दुःख कष्टों को हरता है।
स्नेह भरे आँचल में माते, छुपने को मन करता है॥

है सुकून कहीं और नहीं जो, गोद में तेरे पाता हूँ।
चाहे मैं हो जाऊँ बड़ा, आँचल में शिशु बन जाता हूँ॥
हरपल हर क्षण तुमसे माते, मिलने को मन करता है।
स्नेह भरे आँचल में माते, छुपने को मन करता है॥

सुत के सुख-दुःख को हे माते, आँखों से पढ़ लेती थी।
ग़लती पर माते दुलार का, थप्पड़ भी जड़ देती थीं॥
वही दुलार फिर से पाने को, अक्सर मन तड़पता है।
स्नेह भरे आँचल में माते, छुपने को मन करता है॥

तलाश रहा हूँ बचपन फिर माँ, जहाँ तुम्हारी छाँव मिले।
रहो सदा ही साथ हे माते, पूजन को तेरा पाँव मिले॥
तुझसे ही धड़का था दिल माँ, तेरे लिए धड़कता है।
रोम-रोम और अंग-अंग में, लहू तुम्हारा बहता है॥
स्नेह भरे आँचल में माते, छुपने को मन करता है॥


रचनाकार : उमेश यादव
लेखन तिथि : 2024
यह पृष्ठ 33 बार देखा गया है
×

अगली रचना

तो समझो की ये होली है


पिछली रचना

मँझधार फँसी नैया
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें