शराब पीने से कुछ तो फ़र्क़ पड़ता है, ये लगता है!
ज़रा-सी वक़्त की रफ़्तार धीमी होने लगती है
गटागट पल निगलने की कोई जल्दी नहीं होती
ख़यालों के लिए ‘चेक-पोस्ट’ कम आते हैं रस्ते में
जिधर देखो, उधर पाँव तले हरियाली दिखती है
क़दम रखो तो काई है
फिसलते हैं, सँभलते हैं
जिसे कुछ लोग अक्सर डगमगाना कहने लगते हैं
शराब पीकर, जो ख़ुद से भी नहीं कहते
वो कह देते हैं लोगों की
संद कर देते हैं वो नज़्म कहकर!
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