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संभलना सीखिए (कविता)

लड़खड़ाते हैं क़दम तो फिर संभलना सीखिए,
वक़्त के मानिंद अब ख़ुद को बदलना सीखिए।
तुम सहारे ग़ैर के कब तक चलोगे इस तरह,
चाहते मंज़िल अगर तो ख़ुद भी चलना सीखिए।
अगर चाहते तम को मिटाना ज़िंदगी के बीच से,
तो अमावस रात की शमा सा जलना सीखिए।


रचनाकार : शमा परवीन
लेखन तिथि : 13 अक्टूबर, 2021
            

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