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सहपाठी (कविता) Editior's Choice

वह मेरे साथ पढ़ता था

खाने की छुट्टी में
अपने डब्बे खोलकर
टूट पड़ते थे जब भूखे पशु की तरह
हम सब खाने पर
हमारी आँखों से बचते हुए
आहिस्ता-आहिस्ता वह नल के पास जाता था
और उसमें मुँह लगा देता था

मैं अक्सर देखता था
आती थी फ़ीस की तारीख़
जैसे-जैसे बहुत क़रीब
उसका ख़ून सूखता जाता था

किताब नहीं लाने पर
वह कई दफ़ा कुकड़ूँ-कूँ बोल चुका था
न जाने फिर भी क्यों
वह कक्षा में सबसे पहले आता था

गंदी क़मीज़ पहनने के कारण
उसे स्कूल से लौटा दिया गया
एक दिन घर
उस दिन के बाद स्कूल में
मैंने उसे फिर कभी नहीं देखा

एक झुलसती दोपहर में
वह बैठा दिखाई दिया मुझे
एक बन रही इमारत के क़रीब
उसके पास सीमेंट का एक ख़ाली तरल था
और खरोंच रहा था नाख़ून से वह
अपनी गदोली में बना काला तिल


रचनाकार : विनोद दास
            

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