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ऋतुओं की रानी वर्षा ऋतु (कविता) Editior's Choice

मेघ चले हैं बनकर वाहक,
वसुधा प्यास बुझाने को।
मृदुल स्वप्न ने दिया निमंत्रण,
वर्षा ऋतु के आने को।

हरी भरी वह संध्या कहती,
आने वाली नई नवेली।
नभ का नीला आँगन बदला,
काली घटा ने की अठखेली।

मृदु वसुधा का आंँचल देख,
घन घोर घटाएंँ मुस्काईं।
टेसू फूल भिगोने को ही,
रिमझिम साथ फुहारें लाईं।

पल भर में ही उन बूंँदों ने,
मादक संगीत बिखेर दिया।
ऋतुओं की रानी वर्षा को,
घूंँघट से नया एक छोर दिया।

सूखे बीज वो हुए अंकुरित,
मंद-मंद वो मुस्काए।
जैसे कोई दूर देश से,
वापस अपने घर आए।

ऐसी छवि देख प्रफुल्लित,
नाचन लागे वो वन मयूर।
सूखी ताल तलैया के वो,
जीवन विघ्न सब हुए दूर।

चहुंँ ओर वह हरियल चादर,
ओढ़े वसुधा इठलाई।
मोती बनकर आंँसू गिरते,
नई कोई बेला आई।

अंबर से गिर रहा पीयूष,
देख हैं हर्षित नर नारी।
आज धरा यह स्वयं बनी,
प्रणय मिलन की अधिकारी।


लेखन तिथि : 13 जुलाई, 2023
            

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