एक खोली थोड़ा दु:ख था,
सबका साथ बड़ा सुख था।
माता-पिता और भाई-बहन
हँसता खेलता परिवार बड़ा ख़ुश था
ख़ूब कमाई धन दौलत,
ज़िन्दगी के दु:ख छँट गए।
घर आई भौजी बहन गई ससुराल,
एक पौध तो लगाई पर पेंड़ कट गए।
ख़ूब सजा था 'शाखें गुल सा',
उस घर के सारे फूल छँट गए।
रिश्ते बरसते थे जिस आसमाँ से मगर,
आज रिश्तों के सारे बादल छँट गए।
जग नाम था जिन रिश्तो का,
वो रिश्ते बस नाम के बच गए।
हाथ फैल गया बन्द मुट्ठी खुल गई,
फैल गई आँगनाई पर चूल्हे बँट गए।
खोली बन गई कोठी मगर,
सबके यहाँ कमरे बँट गए।
थी ग़रीबी रिश्ते अनमोल थे 'गाज़ी',
आई अमीरी तो रिश्तो के मोल घट गए।
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