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रात (कविता) Editior's Choice

रात कितनी बीती
कहाँ इसका अनुमान

एकाएक स्वप्न में मेरे
जागे, जागे-से स्वर तुम्हारे
भर गए प्राणों में प्राण

स्वर के जुगनू
छूने की ज़िद में भरमाया-सा
नंगे आसमान के नीचे
निपट अकेला, अकुलाया-सा
आँखों में भर छवि तुम्हारी
ठगा हुआ-सा खड़ा हुआ हूँ
अब ख़ुद से भी अनजान

कहाँ मिलेगा त्राण...


            

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