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पुश्तैनी घर (कविता) Editior's Choice

काग़ज़ पर जिस घर की चर्चा है
वह बहुत पुराना है
मैं जिस घर में रहता हूँ
वह बहुत नया है
नए और पुराने के बीच
कोई सीढ़ी है
जो कभी टूटने नहीं देती
इस भरोसे को कि
घर नया हो या पुराना
रहने वाले की नीयत पर
टिकता है
पुश्तैनी घर
कोई अलबम नहीं होता
जिसमें तस्वीरों को
एक साथ रख दिया जाए तो
ताउम्र वे उसी प्रकार साथ रह जाएँ
उनके कोई तकरार नहीं हो।


रचनाकार : शंकरानंद
            

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