मैं चाहता हूँ कि भूल जाएँ लोग मुझे
सुखद आकांक्षा की तरह
नहीं आऊँ उनकी स्मृति में
और मिटा डालें वे अपनी
चेतना की स्लेट से मेरे
कर्मों-दुष्कर्मों का लेखा-जोखा
चाट जाएँ दीमक मेरे पार्थिव यश
जिन्हें मैंने नहीं इकट्ठा किया
मैं चाहता हूँ कि भूल जाऊँ ख़ुद को ही
कि शायद इसी तरह झुठला सकूँ
विरासत में मिली
हज़ारों साल पुरानी शर्म।
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