पुराने अँधेरे को गा रही हैं सफ़ेद चिड़ियाएँ
जिस पेड़ पर गा रही हैं
असमय झर रही हैं उसकी पत्तियाँ
मैं चाहता हूँ ऊँघने लग जाएँ
जमुहाई लेते हुए पत्थर
बेहतर हो सो ही जाएँ
पता नहीं धरती के किस हिस्से पर
कौन कवि कर रहा है
अपना अंतिम कविता-पाठ।
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