जैसे इन जगहों में पहले भी आया हूँ
बीता हूँ।
जैसे इन महलों में कोई आने को था
मन अपनी मनमानी ख़ुशियाँ पाने को था।
लगता है।
इन बनती-मिटती छायाओं में तड़पा हूँ
किया है इंतज़ार
दी हैं सदियाँ गुज़ार
बार-बार
इन ख़ाली जगहों में भर-भर कर रीता हूँ
रह-रह पछताया हूँ
पहले भी आया हूँ।
बीता हूँ।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें