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पता पूछना (कविता) Editior's Choice

जब भी मैं जाता हूँ अनजान जगहों पर
भूल जाना चाहता हूँ वे तमाम कहानियाँ
जो भय पैदा करती हैं

वे कहानियाँ जो पता नहीं कब सुनी थीं
वे हर वक़्त घूमती रहती हैं दिमाग़ में और
मन सिहर जाता है
किसी अख़बार की कोई ख़बर कौंध जाती है
कोई किरदार याद आ जाता है—
मुश्किल में फँसा हुआ
मैं उन्हें याद करने से इनकार करता हूँ
मैं उन्हें भूल जाना चाहता हूँ

अगर कहीं रास्ता भटक जाता हूँ तो
बिना कोई संकोच किए पूछ लेता हूँ पता
जानता हूँ कि
सही रास्ता बताने वालों की कहानियाँ कोई नहीं सुनाएगा।


रचनाकार : शंकरानंद
            

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