झेलम, पंजाब | 1934
रात कल गहरी नींद में थी जब एक ताज़ा सफ़ेद कैनवस पर आतिशीं, लाल सुर्ख़ रंगों से मैं ने रौशन किया था इक सूरज... सुब्ह तक जल गया था वो कैनवस राख बिखरी हुई थी कमरे में
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