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पंद्रह अगस्त (कविता) Editior's Choice

जय-जय भारतवर्ष प्रणाम!
युग-युग के आदर्श प्रणाम!
शत्-शत् बंधन टूटे आज
बैरी के प्रभु रूठे आज
अंधकार है भाग रहा
जाग रहा है तरुण विहान!

जय जाग्रत् भारत संतान
जय उन्नत जनता सज्ञान
जय मज़दूर, जयति किसान!

वीर शहीदों तुम्हें प्रणाम!
धूल भरी इन राहों पर
पीड़ित जन की आहों पर
किए उन्होंने अर्पित प्राण
वीर शहीदों तुम्हें प्रणाम!

जब तक जीवन मुक्त न हो
क्रंदन-बंधन मुक्त न हो
जब तक दुनिया बदल न जाए
सुखी शांत संयुक्त न हो—
देशभक्त मतवालों के,
हम सब हिम्मत वालों के,
आगे बढ़ते चलें क़दम,
पर्वत चढ़ते चलें क़दम!


            

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