पधारें हमारे आँगन राजा-इन्द्रराज,
सुस्वागतम् आपका यहाँ महाराज।
आएँ जो आप छाई यह ख़ुशहाली,
अब पूर्ण होंगे सभी के सारे काज॥
चहक रहीं चिड़ियाँ पक्षी और मोर,
महकीं यें मिट्टी खेतों में चहुँओर।
प्रकृति भी लगी है आज मुस्करानें,
हुआ जो सुहाना प्यारा-प्यारा भोर॥
झूम रहें सारे यें जंगलों के जानवर,
याद करतें सभी आपको हर पहर।
झड़ी लगाई आपने ऐसी रिम-झिम,
ख़्याल मेरे आया कविता का मन॥
बरसों ऐसे भर दो यह नदी तालाब,
प्यासा न रहें कोई न लाना सैलाब।
वाहन है आपका यह ऐरावत हाथी,
निमंत्रण दे रहें सबको भारतवासी॥
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