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पानी (कविता) Editior's Choice

जब तक मैं इसे जल न कहूँ
मुझे इसकी कल-कल सुनाई नहीं देती
मेरी चुटिया इससे भीगती नहीं
मेरे लोटे में भरा रहता है अंधकार

पाणिनि भी इसे जल ही कहते थे
पानी नहीं

कालांतर में इसे पानी कहा जाने लगा
रघुवीर सहाय जैसे कवि हुए; उठकर बोले :

‘पानी नहीं दिया तो समझो
हमको बानी नहीं दिया।’

सही कहा—पानी में बानी कहाँ
वह जो जल में है।


रचनाकार : असद ज़ैदी
            

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