करौली, राजस्थान | 1954
भौंकता है रात्रि का पशु मेरी खुली आँख से भौंकता है, न कि काटता है भौंकता है क्योंकि शरीर में चीख़ता है शरीर क्योंकि चेतना को भूल गई है निस्पंद घड़ी क्योंकि जो समीपतर है बुरा है—और है।
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