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नज़रिया (कविता) Editior's Choice

जीवन सरल कैसे हो
एक पैमाना लिए
सारी उम्र
मुद्राएँ बटोरता रहा।

हर एक क़दम के बाद
वही समस्याएँ
पर तन-मन में ताक़त थी
लड़ता रहा,
उम्र बढ़ा
तजुर्बा बढ़ा
होश आया
यह चलता रहेगा
रे! मन
नज़रिया बदल
सुख चैन
हर पल है।

समय के साथ चल
वरना फिर यही समय
समय नहीं देगा
समय को क़ैद कर
समय के आग़ोश में नहीं
समय को आग़ोश में ले।


लेखन तिथि : 20 अक्टूबर, 2022
            

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