नदी के पास
देने के लिए बहुत कुछ था
सन्नाटे और एकांत को
नदी ने शब्दों से सींचा
लगी ख़ामोशी बतियाने!
पानी को आवाज़ बख़्शी नदी ने
गले से उतरता पानी
गट-गट सुर में गाने लगा!
प्यासे खेतों को
तर किया इतना नदी ने
कि बंजर खेत-खलिहान
नाज़ की शर्माती बालियों से
लरज-लरज गए!
एक छोर से दूसरे छोर तक
लहरों पर ले गई संदेशे नदी
पानी के स्पर्श के साथ ही
पढ़ लिया प्रेमियों ने
इक-दूजे का मन।
हर बार नदी ने धोया और सिखाया
कि कैसे...
मन की कलुषता निथार लेनी चाहिए
नदी की भाषा में
बहुत से पाठ
अनूदित होने की बाट जोह रहे हैं अभी!
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें