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मेरी कहानी (कविता) Editior's Choice

मेरी कहानी
उस संगमरमरी पत्थर की कहानी है
लोग ख़ूबसूरत कहने के बावजूद
जिसे पत्थर कहते हैं।

उस काली चट्टान की कहानी है
सख़्त होने के बावजूद
कोमल पौधे
जिसके सीने पर अपनी जड़ें जमाए रहते हैं।

जब मैं पैदा हुआ
अपनी कोमल-कोमल गुलाबी हथेलियों में
दो मुट्ठी धूप नार कर बड़ा हो गया
मैंने अपने सीने पर फ़सलें उगाईं
भावनाओं के जल से उन्हें सींचा
और पकती बालियों को देख-देख
भविष्य का नक़्शा खींचा।

लेकिन
जब कभी
फ़सल काटने की कोशिश की
दानों को
अपने से एक युग आगे बढ़ा पाया।

फिर भी मैं
समय से एक-एक टुकड़ा
उधार लेकर बोता रहा
और उस एक युग अंतर को
निरंतर कम करने का प्रयास करता रहा।

लेकिन इस बार,
इस बार दानें तो एक युग आगे हैं ही
ज़मीन भी बहुत आगे सरक गई है
युगों और शताब्दियों आगे
उसके सीने में पड़ी
वे सारी दरारें नार गई हैं
जिन्हें मैं नहीं नार सका था
मैं ज़िंदगी की खाई के इस किनारे खड़ा
उस किनारे पर
उसे मुस्कुराता देख रहा हूँ
दूर...
शायद मेरे अंतर्मन से
ये आवाज़-सी आ रही थी।

ज़मीन तो उसी की होती है
जो फ़सल काट लेते हैं
और इस युग में फ़सल
बोए बिना काट ली जाती है।

अचानक
मैं पीछे हटता गया
युगों और शताब्दियों पीछे
मेरे हाथ छोटे होने लगे
रंग गुलाबी होने लगा
और एक बार फिर से
गुलाबी हथेलियों में
दो मुट्ठी धूप भर कर खड़ा हूँ
एक बार फिर से बड़ा होने की उम्मीद में
ताकि मैं भी
बिना बोए
किसी की फ़सल काट सकूँ
और अभी तक चढ़ा हुआ
समय का क़र्ज़ उतार दूँ।


रचनाकार : शरद बिलाैरे
            

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