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मेरे बच्चे (कविता) Editior's Choice

कल मैं उन्हें विदा दूँगा
उनकी स्कूल की वर्दी में
उन्हे सड़क पार करा कर लौट आऊँगा।
कल वे गुज़रेंगे मेरे घर के ऊपर से
नटखट शैतानियाँ करते।
मेरे बच्चे आसमान तक जाना चाहेंगे
तारे तोड़-तोड़ कर
मेरे घर की छत पर
फेंक देना चाहेंगे।
आसमान के नीलेपन को
अपनी पाँखों में भर लेना चाहेंगे।
मेरे बच्चे आसमान पर से
मुझे अँगूठा दिखाएँगे।
और मैं कितना ख़ुश हो जाऊँगा।
कल जब वे बड़े हो जाएँगे
आसमानी वस्त्रों में उतरेंगे
मेरे रोशनदान में से हाथ हिलाएँगे।
उनके पास बादलों के गुदगुदे अनुभव,
परियों के क़िस्से,
राजकुमारों के सपने होंगे।
वे सुगंध की दिशा में सोचेंगे
और हवाओं पर सवार होकर आएँगे।

वे अपने बचपन का इतना सारा सामान
मेरे घर में सजाना चाहेंगे।
और खिंची दीवारों को देखते ही
उदास हो जाएँगे।
वे हवाओं पर सवार होंगे
और उनका सिर चौखट से टकरा जाएगा।
तब अचानक
बहुत ख़ामोश हो जाएँगे मेरे बच्चे।
मैं न जाने उन्हें किस बात पर झिड़क दूँगा
और उनकी बड़ी-बड़ी आँखें
गूँगी हो जाएँगी।
उन्हे आसमान याद आएगा
और अपने सपने अपंग होते हुए दिखेंगे।
धीरे-धीरे
मुझ जैसे ही हो जाएँगे बच्चे।
मुझ जैसे ही
दुखी सुखी।

इतने दिनों में
वे कितने पिछड़ चुके होंगे
कितने टूट चुके होंगे
कि जब कभी उन्हे लू या जाड़ा लगेगा
कि जब कभी उनका जूता फट जाएगा
कि जब कभी
वे अपने मकान की छत पर से
नटखट बच्चों को गुज़रते देखेंगे
वे आसमान के प्यार में भींग उठेंगे
और मुझे दोष देंगे
मेरे बच्चे
मेरे प्रति घृणा से भर उठेंगे।


रचनाकार : शरद बिलाैरे
            

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