देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

मकर संक्रांति शुभदा जग हो (कविता)

उत्तरायण की अरुणिमा भोर,
मकर संक्रांति शुभदा जग हो।
उद्यम जीवन साफल्य सुपथ,
चहुँ कीर्ति प्रभा जग सुखदा हो।।

नव शस्य पूर्ण वसुधा श्यामल,
मुस्कान कृषक होंठों पर हो।
तन वसन गेह शिक्षा सब जन,
क्षुधार्त्त विरत जन जीवन हो।।

अधिकार मुदित कर्त्तव्य निहित,
नर नारी सम शिक्षित जग हो।
परिवार सुखद जब देश सबल,
रविकान्त सुयश भारतमय हो।।

श्री सूर्य प्रभा मुस्कानभोर,
लोहड़ी अलाव शुभदायक हो।
बिहू ख़ुशियाँ पोंगल उत्सव,
सीमांत शौर्य जग गायक हो।।

परहित सुख मन जीवन पावन,
रस भक्ति प्रीति भारत जन हो।
रख मान तिरंगा निधि पूर्वज,
समभाव परस्पर चितवन हो।।

संक्रांति क्रान्ति उत्थान सुपथ,
अरुणिम प्रभात सत्प्रेरक हो।
गुड़ तिल चाउर मातु पिता से,
कर्त्तव्य पूत सेवा रत हो।।

सुप्रभात दही चुड़वा अचार,
रुचिकर संक्रांति मुदित मन हो।
खिचड़ी सुस्वादु एकत्व वतन,
सद्भाव न्याय पथ जीवन हो।।


लेखन तिथि : 14 जनवरी, 2022
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें