मैं लौट नहीं सका
होकर संपूर्ण स्वर में भर रूपाकार
—यह और बात है
लेकिन उड़ने से पहले
दृष्टि ने ध्यान के अगम शिखरों पर
तुझे ही छुआ था
बनकर प्राण,
हर बार
तार-तार में भर
वेदना की झंकार।
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