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माँ याद तेरी जब आती है (कविता) Editior's Choice

माँ क्या लिखूँ मैं तुम पर रब,
तुम में ही ख़ुद को पाता हूँ।
व्यक्तित्व तुम्हीं अस्तित्व सकल,
माँ ममतांचल सुख देता है।

माँ माँ करता बीता जीवन,
विश्व प्रेम माँ दिल होता है।
ईश्वर का दर्शन माँ आँचल,
घर जन्नत सुख पल होता है।

ममता समता महाशक्ति माँ,
करुणामय माँ तो होती है।
सप्तसिन्धु पावन गंगा सम,
शीतल सुन्दर माँ होती है।

तुमसे अच्छा कौन है माँ जग,
यादें मधुर सुकूँ दे जाती है।
लोरी सुनने मचल रहा बचपन,
गुलज़ार हृदय माँ कर जाती है।

यदि माँ न होती सोच रहा मैं,
जन्म धरा क्या हो पाता है।
अनुभूति अनोखी मनुज लोक,
कहँ माँ ममतामृत मिलता है।

हो सच्ची दोस्त माँ जीवन,
मुस्कान अधर दे जाती है।
तुम वाणी की प्रथम शिक्षिका,
ममतांचल दूध पिलाती है।

माँ याद तेरी जब आती है,
तेरी ममता मुझे सताती है।
स्नेहांचल छाया कल्पद्रुम,
सहलाती पूत सुलाती है।

मानसरोवर वात्सल्य भरी,
आजीवन क्लेशित रहती है।
करुणार्द्र चित्त स्नेहाश्रु नयन,
वक्षस्थल दूध पिलाती है।

अभिलाष हृदय सन्तान सुखी,
कल्पित मन सुत प्रेममयी है।
हर नब्ज़ समझ सुत मनोदशा,
हर वक्त पीठ सहलाती है।

जय माँ ममता वात्सल्य रूप,
बहु रूप रंग भुवि आती है।
माँ बेटी बहना बहू विविध,
शृंगार स्नेह बन जाती है।

गंगा सम पावन चित्त मधुर,
माँ जीवन परहित जीती है।
वात्सल्य भाव परिवार सदा,
माता गृहिणी बन जाती है।

कर दमन नित्य दुःख अन्तस्थल,
सहनशीलता माँ होती है।
त्याग शील गुण बन कर्म पथिक,
सन्तति ढाढस बँधवाती है।

आलोक प्रीति प्रतिबिम्ब सकल,
विचलित सन्तति माँ होती है।
जल सिन्धु तरंगें अन्तस्तल,
स्नेहांचल गीत सुनाती है।

माँ स्नेह सिन्धु शीतल शशि सम,
ममता समता वसुन्धरा है।
समुदार शुद्ध नीलाभ विमल,
अरुणाभ भोर बन जाती है।

हे मातृशक्ति वात्सल्य मधुर,
माँ करुणार्द्र धरा होती है।
चाहत अनन्त सुख सन्तति निज,
द्रुम सरित घटा बन जाती है।


लेखन तिथि : 8 मई, 2022
            

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