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माँ (कविता) Editior's Choice

थकी-हरी माँ
माँ, तुम्हारी हँसुली
जिसे रख आए थे पिता
बनिए की दुकान
उग रही है
दूर आसमान पर
इंद्रधनुष की तरह!

माँ, तुम्हारा छागल
जिसे छीन ले गया था
भट्ठी का मालिक
रात के चढ़ते पहर में
झन-झन बज रहा है
कीट-पतंगों के संग
पीठ पर पहाड़ ढोती माँ

माँ, तुम्हारी ख़ुशी
खिलने से पहले ही
जिसे पार गया था पाला
खिल रही है
आसमान में चाँद बन

हमारे लिए
हम सबके लिए जीती माँ
माँ, तुम्हारा आँचल
जो बिछ गया था पटवारी के पाँव पर
फैला है आसमान में चाँदनी रात की तरह

थकी-हारी माँ...!


            

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