देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

कितने हाथ सवाली हैं (ग़ज़ल) Editior's Choice

कितने हाथ सवाली हैं
कितनी जेबें ख़ाली हैं

सब कुछ देख रहा हूँ मैं
रातें कितनी काली हैं

मंज़र से ला-मंज़र तक
आँखें ख़ाली ख़ाली हैं

उस ने कोरे-काग़ज़ पर
कितनी शक्लें ढाली हैं

सिर्फ़ ज़फ़र 'ताबिश' हैं हम
'ग़ालिब' 'मीर' न 'हाली' हैं


            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें