कितनों ने उपकृत किया
कितनों ने अनदेखा
फिर भी जीवन रहा वैसा ही अकारथ
ख़ुद के भीतर से आए कोई गीत
मन ही मन सूझे कोई मज़ाक़
हाथ आए छूटता हुआ
यह माघ मास
सोचते धीरज धरते गुज़री
लगभग आधी सदी
अब देखें औरों को
उनकी कोशिशों की जय-पराजय में
तब्दील करें अपने सुख-दुःख
अपनी जीवनी समेटकर
औरों की तरह भारतवासी बनें।
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