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किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला (ग़ज़ल) Editior's Choice

किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला,
बशर को ज़ीस्त मिली मौत को बहाना मिला।

मज़ाक़-ए-तल्ख़-पसंदी न पूछ इस दिल का,
बग़ैर मर्ग जिसे ज़ीस्त का मज़ा न मिला।

दबी ज़बाँ से मिरा हाल चारासाज़ न कह,
बस अब तू ज़हर ही दे ज़हर में दवा न मिला।

ख़ुदा की देन नहीं ज़र्फ़-ए-ख़ल्क़ पर मौक़ूफ़,
ये दिल भी क्या है जिसे दर्द का ख़ज़ाना मिला।

दुआ गदा-ए-असर है गदा पे तकिया न कर,
कि ए'तिमाद-ए-असर क्या मिला मिला न मिला।

ज़ुहूर-ए-जल्वा को है एक ज़िंदगी दरकार,
कोई अजल की तरह देर-आश्ना न मिला।

तलाश-ए-ख़िज़्र में हूँ रू-शनास-ए-ख़िज़्र नहीं,
मुझे ये दिल से गिला है कि रहनुमा न मिला।

निशान-ए-मेहर है हर ज़र्रा ज़र्फ़-ए-मेहर नहीं,
ख़ुदा कहाँ न मिला और कहीं ख़ुदा न मिला।

मिरी हयात है महरूम-ए-मुद्दा-ए-हयात,
वो रहगुज़र हूँ जिसे कोई नक़्श-ए-पा न मिला।

वो ना-मुराद-ए-अजल बज़्म-ए-यास में भी नहीं,
यहाँ भी 'फ़ानी'-ए-आवारा का पता न मिला।


            

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