जिन बस्तियों को हमने
दिए पक्षियों के नाम
पक्षी वे लुप्त हो गए
—सूखे जिस्मों-सी बस्तियाँ—
लोग जाने कहाँ गए
किससे पूछें
संदेश लेने-देने वाले
पक्षी भी
न रहे
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