कौन कहता है तुझे तू दीपकों के गीत गा,
ज़ुल्मतों का दौर है तो ज़ुल्मतों के गीत गा।
क्या ख़बर है फूल कोई खिल उठे इंसाफ़ का,
इस चमन में बागबाँ की हरकतों के गीत गा।
क्या ख़बर है हूक सुनकर रो पड़े बादल कोई,
चातकों से सुर मिला कर चातकों के गीत गा।
क्या ख़बर है दीन कोई जाग उठे सोया हुआ,
मक़तलों के सामने जा बेबसों के गीत गा।
भीड़ ज़ख़्मों के सिवा कुछ और तो देती नहीं,
ज़ख़्मियों के पास जाकर मरहमों के गीत गा।
काम से होती क़द्र है काम रख तू काम से,
काम गर आता नहीं तो अफ़सरों के गीत गा।
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