एक है माँ
कितने बेटों के
बीच बँटी है।
पिता गए तो
सारा घर ही
टूट गया है।
बुरा समय
ख़ुशियों को आकर
कूट गया है।।
थी मेड़ ही
पगडंडी-
दिखती कटी-कटी है।
भाई-भौजाई
किसी बात पे
अकड़े हैं।
साँप स्वार्थ का
कसकर-
रिश्तों को जकड़े है।।
इसीलिए परिवार
में होती
खटापटी है।
पास-पड़ोस भी
फूट पड़ी तो
जमकर हँसा।
सीने में
कुटुंब के
तीर विघटन का धँसा।।
खोई नम्रता
और आदमी
हुआ हठी है।
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