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कन्या भ्रुण हत्या (कविता)

ना गुड़िया को मारो मैया उसको बाहर आने दो।
ना पिछड़े में क़ैद करो आज़ादी दो आज़ादी दो।।
आज़ादी के कारण ही कल्पना जी इतिहास रची,
आज़ादी के कारण ही रानी से माँ की लाज बची।
आज़ादी जो मिली हुई थी इंदिरा पीएम बन पाईं,
आज़ादी जो मिली हुई थी माया सीएम बन पाईं।
आज़ादी से युग बदलेगा आभास कराकर रख डाला,
आज देश की बेटियों ने, इतिहास बना कर रख डाला।
ना छीनों आज़ादी को गुड़िया को खुलकर जीने दो,
पंख पसारे उड़े गगन में, आसमान को छूने दो।
पुत्र प्राप्ति की ख़ातिर हर देवों का शृंगार किए,
पर छोटी निर्दोष कली का अंदर ही संहार किए।
उसको धरती पर लाओ वो भी भारत का अंश बने,
कोई बच्ची मर ना जाए, फिर ना कोई कंस बने।
बेटी होती है इज़्ज़त वह सीमित अधिकार में रहती है,
बेटी ना हो तो देश की बगिया, अँधकार में रहती है।
ना मैं चाहत रखता हूँ कि बिन बेटी के भारत हो,
ना मैं चाहत रखता हूँ कि सभी अस्मिता गारत हो।
उठो चलो इतना बतला दो दिल्ली के पहरेदारों को,
क्षमादान अब मिल ना पाए किसी भ्रूण हत्यारों को।
बहुत हो चुका अत्याचार अब खुलकर बतलाने दो,
ना गुड़िया को मारो मईया उसको बाहर आने दो।


रचनाकार : अभिषेक अजनबी
लेखन तिथि : 9 मार्च, 2022
            

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