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कब मिलोगे बोलिए जी (ग़ज़ल) Editior's Choice

कब मिलोगे बोलिए जी,
चुप ज़ुबाँ को खोलिए जी।

याद में छुप कर बहुत दिन,
अब बहुत दिन रो लिए जी।

क्यों बसे आकर ज़हन में,
क्यों तसव्वुर हो लिए जी।

है अगर हमसे मुहब्बत,
लफ़्ज़ से रस घोलिए जी।

है ज़रूरत एक हाँ की,
शब्द भी क्या सो लिए जी।

कर सके पूरे न वादे,
दोस्त ख़ुद को तोलिए जी।

देखिए हमने नयन भी,
आँसुओं से धो लिए जी।


लेखन तिथि : 16 फ़रवरी, 2023
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
तक़ती : 2122 2122
            

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