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काले भेड़िए के ख़िलाफ़ (कविता) Editior's Choice

देखो
कि जंगल आज भी उतना ही ख़ूबसूरत है।
अपने आशावान हरेपन के साथ
बरसात में झूमता हुआ।
उस काले भेड़िए के बावजूद
जो
शिकार की टोह में
झाड़ियों से निकलकर खुले में आ गया है।

ख़रगोशों और चिड़ियों और पौधों की दूधिया
वत्सल निगाहों से

जंगल को देख भर लेना
दरअसल
उस काले भेड़िए के ख़िलाफ़ खड़े हो जाना है जो
सिर्फ़
अपने भेड़िया होने की वजह से
जंगल की ख़ूबसूरती का दावेदार है

भेड़िए
हमेशा हमें उस कहानी तक पहुँचाते हैं
जिसे
वसंत से पहले
कभी न कभी तो शुरू होना ही होता है और
यह भी बहुत मुमकिन है
कि ऐसी और भी कई कहानियाँ
कथावाचक के कंठ में
अभी भी
सुरक्षित हों।
जानना इतना भर ज़रूरी है
कि हर कहानी का एक अंत होता है।
और यह जानते ही
भविष्य तुम्हारी ओर मुस्कुराकर देखेगा।
तब इतना भर करना
कि पास खड़े आदमी को इशारा कर देना
ताकि वह भी
भेड़िए के डर से काँपना छोड़
जंगल की सनातन ख़ूबसूरती को
देखने लग जाए।


            

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