काए मारे है फिर जफ़ा करके,
हम मरे थे ख़ुदा ख़ुदा करके।
दिल ने हर चीज़ मुफ़्त में चाही,
हक़ हुआ है तो हक़ अदा करके।
जो मिला वो कहीं नहीं मिलता,
उस बियाबान से वफ़ा करके।
फ़िक्र आवाज़ है परिंदे की,
चाँदनी में पिया पिया करके।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें