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जीवन कुछ इस क़दर (कविता)

जीवन कुछ इस प्रकार है कि
वहाँ रहने के लिए ज़मीन है,
छत के लिए आसमान है,
खाने के लिए दो वक़्त की रोटी नसीब नहीं,
फिर भी, जीवन जीने की आस है।

वहीं एक ओर जीवन कुछ इस कदर है कि
रहने के लिए आलिशान घर है,
खाने के लिए अनेक व्यंजन है,
काम करवाने के लिए नौकर,
और महँगी गाड़ी भी है।
पर वहाँ वह अपनापन नहीं,
वहाँ कोई रिश्ता नहीं,
बस अजनबी होकर सभी रहे गए।

सुविधावादी बनने के लिए
जहाँ हम सहजता को अपनाते गए,
जीवन की मुश्किल घड़ी में
जो परिवार हमारे साथ था
हम अपनी सुविधा के लिए
उनसे दूर होते रहे।

विकास की भाषा को समझने के लिए
हम पाश्चात्य संस्कृति को अपनाते अपनाते
अपनी ही प्राचीन संस्कृति को भूलते रहे,
जिस संस्कृति ने हमें
जीवन जीने की
शैली सिखाई थी,
उससे आज हम सब
दूर होकर, जीवन के चक्रव्यूह में
उलझते गए।


लेखन तिथि : 28 अक्टूबर, 2020
            

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